हिमायतनगर जिला परिषद कन्या स्कुल के छात्रो ने प्रभातफेरी निकलकर सावित्रीबाई फुले कि जयजयकार कि


नांदेड, एम अनिलकुमार|
भारत में शिक्षा पाना सभी का अधिकार है लेकिन समाज में कई समुदाय इससे लंबे से समय तक दूर रहे हैं. उन्हें शिक्षा का अधिकार पाने के लिए लंबा लड़ाई लड़नी पड़ी है. खासतौर पर लड़कियों को शिक्षा पाने के लिए अपनों का ही विरोध झेलना पड़ा है. आज देश की पहली महिला शिक्षक सावित्री बाई फुले की जयंती है, इसी उप्लक्ष पर नांदेड जिले के हिमायतनगर शहर के जिला परिषद कन्या स्कुल के छात्रो ने शहर से प्रभातफेरी निकलकर सावित्रीबाई फुले कि जयजयकार कि| बाद स्कुल में सावित्रीबाई फुले के प्रतिमा को पुष्पहार अर्पण गणमान्य व्यक्ती और स्कुल छात्र और टीचर ने अभिवादन किया| इस अवसर पर सावित्रीबाई फुले ने महिलाओ को शिक्षक का अधिकार दिलाने के लिये किये हुए संघर्ष और योगदान कि गाथा सुनबाई गई  


जिन्होंने पहले खुद लंबी लडाई लड़कर पढ़ाई की बल्कि उसके बाद दूसरी लड़कियों को पढ़ने में मदद की. सावित्री बाई फुले के बिना देश की शिक्षा और समाजिक उत्थान की बात अधूरी है. तब सावित्री बाई फुले ने अपने पति दलित चिंतक समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले से पढ़कर सामाजिक चेतना फैलाई थी. उन्होंने 19वीं सदी में स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई थी, अंधविश्वास और रूढ़ियों की बेड़ियां तोड़ने के लिए उन्होने लंबा संघर्ष किया. सावित्री बाई फुले ने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले. आज उन्हीकी वजह से समाज में महिलाये पुरोषो के साथ मिलकर  बाराबरो में काम कर रहि है, यह केवल शिक्षा कि वजह से हो पाया है  

बताया जाता है कि सावित्रीबाई फुले जब लड़कियों को पढ़ाने स्कूल जाती थी तो पुणे में स्त्री शिक्षा के विरोधी उन पर गोबर फेंक देते थे, पत्थर मारते थे. वे हर दिन बैग में एक्स्ट्रा साड़ी लेकर जाती थी और स्कूल पहुंचकर अपनी साड़ी बदल लेती थीं. सावित्रीबाई ने उस दौर में लड़कियों के लिए स्कूल खोला जब बालिकाओं को पढ़ाना-लिखाना सही नहीं माना जाता था.

सावित्रीबाई फुले हमेशा महिलाओं और वंचितों की शिक्षा के लिए जोरदार तरीके से आवाज उठाती रहीं. उन्हे शिक्षा से समाज के सशक्तिकरण पर गहरा विश्वास था. 'जब महाराष्ट्र में अकाल पड़ा तो सावित्रीबाई और महात्मा फुले ने जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने घरों के दरवाजे खोल दिए थे. जब वहां प्लेग का भय व्याप्त था तो उन्होंने खुद को लोगों की सेवा में झोंक दिया. इस दौरान वे खुद इस बीमारी की चपेट में आ गईं.
मानवता को समर्पित उनका जीवन आज भी हम सभी को प्रेरित कर रहा है.'  उनका पूरा जीवन समाज के वंचित तबके खासकर महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता. उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जिसमें वह सबको पढ़ने- लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने और ब्राह्मणवादी ग्रंथों को फेंकने की बात करती थीं.

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